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अग्ने॒ भव॑ सुष॒मिधा॒ समि॑द्ध उ॒त ब॒र्हिरु॑र्वि॒या वि स्तृ॑णीताम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne bhava suṣamidhā samiddha uta barhir urviyā vi stṛṇītām ||

पद पाठ

अग्ने॑। भव॑। सु॒ऽस॒मिधा॑। सम्ऽइ॑द्धः। उ॒त। ब॒र्हिः। उ॒र्वि॒या। वि। स्तृ॒णी॒ता॒म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:17» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्यार्थी किसके तुल्य कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी विद्वन् ! जैसे (सुषमिधा) समिधा के तुल्य शोभायुक्त धर्मानुकूल क्रिया से (समिद्धः) प्रदीप्त अग्नि होता है, वैसे (भव) हूजिये (उत) और जैसे अग्नि (उर्विया) पृथिवी के साथ (बर्हिः) बढ़े हुए जल का विस्तार करता है, वैसे प्रकार होकर आप (वि, स्तृणीताम्) विस्तार कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इन्धनों से अग्नि प्रदीप्त होता, वर्षा जल से पृथिवी को आच्छादित करता है, वैसे ही ब्रह्मचर्य्य, सुशीलता और पुरुषार्थ से विद्यार्थी जन सुप्रकाशित होकर जिज्ञासुओं के हृदयों में विद्या का विस्तार करते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्यार्थिनः किंवत्कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यथा सुषमिधा समिद्धोऽग्निर्भवति तथा भव उत यथा वह्निरुर्विया बर्हिषि स्तृणाति तथाविधो भवान् विस्तृणीताम् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् ! (भव) (सुषमिधा) शोभनया समिधेव धर्म्यक्रियया (समिद्धः) प्रदीप्तः (उत) अपि (बर्हिः) प्रवृद्धमुदकम्। बर्हिरित्युदकनाम। (निघं०१.१२)। (उर्विया) पृथिव्या सह (वि) (स्तृणीताम्) तनोतु ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेन्धनैरग्निः प्रदीप्यते वर्षोदकेन भूमिमाच्छदयति तथैव ब्रह्मचर्यसुशीलता-पुरुषार्थैर्विद्यार्थिनः सुप्रकाशिता भूत्वा जिज्ञासुहृदयेषु विद्यां विस्तारयन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अध्यापक व विद्यार्थ्यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूर्क्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा इंधनाने अग्नी प्रदीप्त होतो, वृष्टी जलाने पृथ्वीला आच्छादित करते, तसेच ब्रह्मचर्य, सुशीलता व पुरुषार्थ याद्वारे विद्यार्थी सुप्रकाशित होऊन जिज्ञासूंच्या हृदयात विद्या प्रसृत करतात. ॥ १ ॥